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The Complete and Official Information of Chanakya Neeti All Chapters in Hindi 2024
Chanakya Neeti All Chapters in Hindi 2024
We Covered All Chapters in One Article that Chanakya Neeti All Chapters in Hindi
हेलो मित्रो इस आर्टिकल में हम महान चन्द्रगुप्त मौर्य के राजगुरु चाणक्य के विचार और निति को जानेगे जिससे हम अपनी लाइफ में सुसस्फुल हो सके. चाणक्य निति में कही गए बातो को हमें अपने जीवन में उतरना चाहिए|
चाणक्य सिर्फ राजगुरु ही नहीं थे अभी तो वह शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद, चंद्रगुप्त मौर्य के सलाहकारभी थे| चाणक्य निति में लिखे गए सरे अध्याय हमें कैसे अपने जीवन को अच्छी तरह से जीना हे उनके अलावा कैसे हम अपने जीवन में आयी हर मुसीबत का सामना कर सकते हे उनके बारे में बहुत ही अच्छी तरह से बताया हे| तो आईये देखते हे चाणक्य निति के अध्याय को और समझते हे कैसे हम अपने लाइफ में इस रूल को फॉलो करके आगे बढ़ सकते हे|
Chanakya Neeti in Hindi First Chapter 1 | चाणक्य नीति : प्रथम अध्याय
- “1.1 सर्वशक्तिमान तीनो लोको के स्वामी श्री विष्णु भगवान को शीश नवाकर मै अनेक शास्त्रों से निकाले गए राजनीति सार के तत्व को जन कल्याण हेतु समाज के सम्मुख रखता हूं”
- “1.2 इस राजनीति शास्त्र का विधिपूर्वक अध्ययन करके यह जाना जा सकता है कि कौनसा कार्य करना चाहिए और कौनसा कार्य नहीं करना चाहिए। यह जानकर वह एक प्रकार से धर्मोपदेश प्राप्त करता है कि किस कार्य के करने से अच्छा परिणाम निकलेगा और किससे बुरा। उसे अच्छे बुरे का ज्ञान हो जाता है”
- “1.3 इसलिए जनता की भलाई के लिए, मैं वह बात कहूंगा, जो जब समझ में आएगी, तब उनके उचित परिप्रेक्ष्य में चीजों की समझ पैदा होगी”
- “1.4 यहां तक कि एक पंडित एक मूर्ख शिष्य को निर्देश देता है, एक दुष्ट पत्नी को बनाए रखने से, और दुखी के साथ अत्यधिक परिचित होने से”
- “1.5 दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है। – चाणक्य नीति”
- “1.6 विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करे। धन से स्त्री की रक्षा करे और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें।”
- “1.7 आपत्ति से बचने के लिए धन की रक्षा करे क्योंकि पता नहीं कब आपदा आ जाए। लक्ष्मी तो चंचल है। संचय किया गया धन कभी भी नष्ट हो सकता है।”
- “1.8 जिस देश में सम्मान नहीं, आजीविका के साधन नहीं, बन्धु-बांधव अर्थात परिवार नहीं और विद्या प्राप्त करने के साधन नहीं, वहां कभी नहीं रहना चाहिए।”
- “1.9 जहां धनी, वैदिक ब्राह्मण, राजा,नदी और वैद्य, ये पांच न हों, वहां एक दिन भी नहीं रहना चाहियें। भावार्थ यह कि जिस जगह पर इन पांचो का अभाव हो, वहां मनुष्य को एक दिन भी नहीं ठहरना चाहिए।”
- “1.10 जहां जीविका, भय, लज्जा, चतुराई और त्याग की भावना, ये पांचो न हों, वहां के लोगो का साथ कभी न करें।”
- “1.11 नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई-बंधुओ को संकट के समय तथा दोस्त को विपत्ति में और अपनी स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए, अर्थात उनकी परीक्षा करनी चाहिए।“
- “1.12 बीमारी में, विपत्तिकाल में,अकाल के समय, दुश्मनो से दुःख पाने या आक्रमण होने पर, राजदरबार में और श्मशान-भूमि में जो साथ रहता है, वही सच्चा भाई अथवा बंधु है।”
- “1.13 जो अपने निश्चित कर्मों अथवा वास्तु का त्याग करके, अनिश्चित की चिंता करता है, उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है, निश्चित भी नष्ट हो जाता है।”
- “1.14 बुद्धिहीन व्यक्ति को अच्छे कुल में जन्म लेने वाली कुरूप कन्या से भी विवाह कर लेना चाहिए, परन्तु अच्छे रूप वाली नीच कुल की कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि विवाह संबंध समान कुल में ही श्रेष्ठ होता है।”
- “1.15 लम्बे नाख़ून वाले हिंसक पशुओं, नदियों, बड़े-बड़े सींग वाले पशुओ, शस्त्रधारियों, स्त्रियों और राज परिवारो का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।”
- “1.16 विष से अमृत, अशुद्ध स्थान से सोना, नीच कुल वाले से विद्या और दुष्ट स्वभाव वाले कुल की गुनी स्त्री को ग्रहण करना अनुचित नहीं है।”
- “1.17 पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का भोजन दुगना, लज्जा चौगुनी, साहस छः गुना और काम (सेक्स की इच्छा) आठ गुना अधिक होता है।”
Chanakya Neeti in Hindi Second Chapter 2 | चाणक्य नीति : दूसरा अध्याय
- “2.1: झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, अशुद्धता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते है।”
- “2.2: भोजन करने तथा उसे अच्छी तरह से पचाने की शक्ति हो तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त होता हो, प्रेम करने के लिए अर्थात रति-सुख प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो, ये सभी सुख किसी तपस्या के फल के समान है, अर्थात कठिन साधना के बाद ही प्राप्त होते है।”
- “2.3: जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो, स्त्री उसके अनुसार चलने वाली हो, अर्थात पतिव्रता हो, जो अपने पास धन से संतुष्ट रहता हो, उसका स्वर्ग यहीं पर है।”
- “2.4: पुत्र वे है जो पिता भक्त है। पिता वही है जो बच्चों का पालन-पोषण करता है। मित्र वही है जिसमे पूर्ण विश्वास हो और स्त्री वही है जिससे परिवार में सुख-शांति व्याप्त हो।”
- “2.5: जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यो में रोड़ा अटकाता हो, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके भीतर विष भरा हो और ऊपर मुंह के पास दूध भरा हो।”
- “2.6: बुरे मित्र पर अपने मित्र पर भी विश्वास नही करना चाहिए क्योंकि कभी नाराज होने पर सम्भवतः आपका विशिष्ट मित्र भी आपके सारे रहस्यों को प्रकट कर सकता है।”
- “2.7: मन से विचारे गए कार्य को कभी किसी से नहीं कहना चाहिए, अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने (सोचे हुए) कार्य को करते रहना चाहिए।”
- “2.8: निश्चित रूप से मूर्खता दुःखदायी है और यौवन भी दुःख देने वाला है परंतु कष्टो से भी बड़ा कष्ट दूसरे के घर पर रहना है।”
- “2.9: हर एक पर्वत में मणि नहीं होती और हर एक हाथी में मुक्तामणि नहीं होती। साधु लोग सभी जगह नहीं मिलते और हर एक वन में चंदन के वृक्ष नहीं होते।”
- “2.10: बुद्धिमान लोगो का कर्तव्य होता है की वे अपनी संतान को अच्छे कार्य-व्यापार में लगाएं क्योंकि नीति के जानकार व सद्व्यवहार वाले व्यक्ति ही कुल में सम्मानित होते है।”
- “2.11: जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते, वे उनके शत्रु है। ऐसे अपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते, जैसे हंसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता।”
- “2.12: अत्यधिक लाड़-प्यार से पुत्र और शिष्य गुणहीन हो जाते है और ताड़ना से गुनी हो जाते है। भाव यही है कि शिष्य और पुत्र को यदि ताड़ना का भय रहेगा तो वे गलत मार्ग पर नहीं जायेंगे।”
- “2.13: एक श्लोक, आधा श्लोक, श्लोक का एक चरण, उसका आधा अथवा एक अक्षर ही सही या आधा अक्षर प्रतिदिन पढ़ना चाहिए।”
- “2.14: स्त्री का वियोग, अपने लोगो से अनाचार, कर्ज का बंधन, दुष्ट राजा की सेवा, दरिद्रता और अपने प्रतिकूल सभा, ये सभी अग्नि न होते हुए भी शरीर को दग्ध कर देते है।”
- “2.15: नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए।”
- “2.16: ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वेश्यो का बल उनका धन है और शूद्रों का बल छोटा बन कर रहना, अर्थात सेवा-कर्म करना है।”
- “2.17: वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को व अतिथि उस घर को, जिसमे वे आमंत्रित किए जाते है, को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते है।”
- “2.18: ब्राह्मण दक्षिणा ग्रहण करके यजमान को, शिष्य विद्याध्ययन करने के उपरांत अपने गुरु को और हिरण जले हुए वन को त्याग देते है।”
- “2.19: जो व्यक्ति दुराचारी, कुदृष्टि वाले, एवं बुरे स्थान पर रहने वाले मनुष्य के साथ मित्रता करता है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।”
- “2.20: मित्रता बराबर वालों में शोभा पाती है,नौकरी राजा की अच्छी होती है, व्यवहार में कुशल व्यापारी और घर में सुंदर स्त्री शोभा पाती है।”
Chanakya Neeti in Hindi Third Chapter 3 | चाणक्य नीति : तीसरा अध्याय
- 3.1: दोष किसके कुल में नहीं है ? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ?
- 3.2: मनुष्य का आचरण-व्यवहार उसके खानदान को बताता है, भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है, विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है।
- 3.3: कन्या का विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए। पुत्र को विध्या के साथ जोड़ना चाहिए। दुश्मन को विपत्ति में डालना चाहिए और मित्र को अच्छे कार्यो में लगाना चाहिए।
- 3.4: दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है।
- 3.5: इसीलिए राजा खानदानी लोगो को ही अपने पास एकत्र करता है क्योंकि कुलीन अर्थात अच्छे खानदान वाले लोग प्रारम्भ में, मध्य में और अंत में, राजा को किसी दशा ने भी नहीं त्यागते।
- 3.6: प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को नष्ट कर डालते है परन्तु साधु लोग प्रलय काल के आने पर भी अपनी मर्यादा को नष्ट नहीं होने देते।
- 3.7: मुर्ख व्यक्ति से बचना चाहिए। वह प्रत्यक्ष में दो पैरों वाला पशु है। जिस प्रकार बिना आँख वाले अर्थात अंधे व्यक्ति को कांटे भेदते है, उसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति अपने कटु व अज्ञान से भरे वचनों से भेदता है।
- 3.8: रूप और यौवन से संपन्न तथा उच्च कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी यदि विध्या से रहित है तो वह बिना सुगंध के फूल की भांति शोभा नहीं पाता।
- 3.9: कोयल की शोभा उसके स्वर में है, स्त्री की शोभा उसका पतिव्रत धर्म है, कुरूप व्यक्ति की शोभा उसकी विद्वता में है और तपस्वियों की शोभा क्षमा में है। – चाणक्य नीति
- 3.10: किसी एक व्यक्ति को त्यागने से यदि कुल की रक्षा होती हो तो उस एक को छोड़ देना चाहिए। पूरे गांव की भलाई के लिए कुल को तथा देश की भलाई के लिए गांव को और अपने आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए सारी पृथ्वी को छोड़ देना चाहिए।
- 3.11: उद्धयोग-धंधा करने पर निर्धनता नहीं रहती है। प्रभु नाम का जप करने वाले का पाप नष्ट हो जाता है। चुप रहने अर्थात सहनशीलता रखने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और वो जागता रहता है अर्थात सदैव सजग रहता है उसे कभी भय नहीं सताता।
- 3.12: अति सुंदर होने के कारण सीता का हरण हुआ, अत्यंत अहंकार के कारण रावण मारा गया, अत्यधिक दान के कारण राजा बलि बांधा गया। अतः सभी के लिए अति ठीक नहीं है। ‘अति सर्वथा वर्जयते।’ अति को सदैव छोड़ देना चाहिए।
- 3.13: समर्थ को भार कैसा ? व्यवसायी के लिए कोई स्थान दूर क्या ? विद्वान के लिए विदेश कैसा? मधुर वचन बोलने वाले का शत्रु कौन ?
- 3.14: एक ही सुगन्धित फूल वाले वृक्ष से जिस प्रकार सारा वन सुगन्धित हो जाता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से सारा कुल सुशोभित हो जाता है।
- 3.15: आग से जलते हुए सूखे वृक्ष से सारा वन जल जाता है जैसे की एक नालायक (कुपुत्र) लड़के से कुल का नाश होता है।
- 3.16: जिस प्रकार चन्द्रमा से रात्रि की शोभा होती है, उसी प्रकार एक सुपुत्र, अर्थात साधु प्रकृति वाले पुत्र से कुल आनन्दित होता है।
- 3.17: शौक और दुःख देने वाले बहुत से पुत्रों को पैदा करने से क्या लाभ है ? कुल को आश्रय देने वाला तो एक पुत्र ही सबसे अच्छा होता है।
- 3.18: पुत्र से पांच वर्ष तक प्यार करना चाहिए। उसके बाद दस वर्ष तक अर्थात पंद्रह वर्ष की आयु तक उसे दंड आदि देते हुए अच्छे कार्य की और लगाना चाहिए। सोलहवां साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए। संसार में जो कुछ भी भला-बुरा है, उसका उसे ज्ञान कराना चाहिए।
- 3.19: देश में भयानक उपद्रव होने पर, शत्रु के आक्रमण के समय, भयानक दुर्भिक्ष(अकाल) के समय, दुष्ट का साथ होने पर, जो भाग जाता है, वही जीवित रहता है।
- 3.20: जिसके पास धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इनमे से एक भी नहीं है, उसके लिए अनेक जन्म लेने का फल केवल मृत्यु ही होता है।
- 3.21: जहां मूर्खो का सम्मान नहीं होता, जहां अन्न भंडार सुरक्षित रहता है, जहां पति-पत्नी में कभी झगड़ा नहीं होता, वहां लक्ष्मी बिना बुलाए ही निवास करती है और उन्हें किसी प्रकार की कमी नहीं रहती।
Chanakya Neeti in Hindi Fourth Chapter 4 | चाणक्य नीति : चौथा अध्याय
- 4.1: यह निश्चित है की शरीरधारी जीव के गर्भकाल में ही आयु, कर्म, धन, विध्या, मृत्यु इन पांचो की सृष्टि साथ-ही-साथ हो जाती है।
- 4.2: साधु महात्माओ के संसर्ग से पुत्र, मित्र, बंधु और जो अनुराग करते है, वे संसार-चक्र से छूट जाते है और उनके कुल-धर्म से उनका कुल उज्जवल हो जाता है।
- 4.3: जिस प्रकार मछली देख-रेख से, कछुवी चिड़िया स्पर्श से (चोंच द्वारा) सदैव अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही अच्छे लोगोँ के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है।
- 4.4: यह नश्वर शरीर जब तक निरोग व स्वस्थ है या जब तक मृत्यु नहीं आती, तब तक मनुष्य को अपने सभी पुण्य-कर्म कर लेने चाहिए क्योँकि अंत समय आने पर वह क्या कर पाएगा।
- 4.5: विध्या कामधेनु के समान सभी इच्छाए पूर्ण करने वाली है। विध्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते है। परदेस में विध्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानो ने विध्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विध्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है।
- 4.6: सैकड़ो अज्ञानी पुत्रों से एक ही गुणवान पुत्र अच्छा है। रात्रि का अंधकार एक ही चन्द्रमा दूर करता है, न की हजारों तारें।
- 4.7: बहुत बड़ी आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही जो मर गया, वह अच्छा है क्योंकि मरा हुआ पुत्र कुछ देर के लिए ही कष्ट देता है, परन्तु मूर्ख पुत्र जीवनभर जलाता है।
- 4.8: बुरे ग्राम का वास, झगड़ालू स्त्री, नीच कुल की सेवा, बुरा भोजन, मूर्ख लड़का, विधवा कन्या, ये छः बिना अग्नि के भी शरीर को जला देते है।
- 4.9: उस गाय से क्या लाभ, जो न बच्चा जने और न ही दूध दे। ऐसे पुत्र के जन्म लेने से क्या लाभ, जो न तो विद्वान हो, न किसी देवता का भक्त हो।
- 4.10: इस संसार में दुःखो से दग्ध प्राणी को तीन बातों से सुख शांति प्राप्त हो सकती है – सुपुत्र से, पतिव्रता स्त्री से और सद्संगति से।
- 4.11: राजा लोग एक ही बार बोलते है (आज्ञा देते है), पंडित लोग किसी कर्म के लिए एक ही बार बोलते है (बार-बार श्लोक नहीं पढ़ते), कन्याएं भी एक ही बार दी जाती है। ये तीन एक ही बार होने से विशेष महत्व रखते है।
- 4.12: तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, गाना तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत से सहायको के साथ होने पर ही उत्तम होता है।
- 4.13: पत्नी वही है जो पवित्र और चतुर है, पतिव्रता है, पत्नी वही है जिस पर पति का प्रेम है, पत्नी वही है जो सदैव सत्य बोलती है। – चाणक्य नीति
- 4.14: एक निःसंतान व्यक्ति का घर एक शून्य है, सभी दिशाएं शून्य हैं जिनके कोई रिश्तेदार नहीं हैं, मूर्ख का दिल भी शून्य है, लेकिन गरीबी से त्रस्त व्यक्ति के लिए सब शून्य है।
- 4.15: अभ्यास में नहीं लगाए गए शास्त्रों के पाठ जहर हैं; भोजन उसे जहर है जो अपच से पीड़ित है; एक सामाजिक सभा एक गरीबी से त्रस्त व्यक्ति के लिए जहर है; और एक युवा पत्नी एक वृद्ध व्यक्ति के लिए जहर है।
- 4.16: उस आदमी को जो धर्म और दया के बिना है, को अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए। आध्यात्मिक ज्ञान के बिना एक गुरु को अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए। आक्रामक चेहरे वाली पत्नी को छोड़ दिया जाना चाहिए, और ऐसे रिश्तेदारों को जो स्नेह के बिना हैं।
- 4.17: लगातार यात्रा एक आदमी पर बुढ़ापा लाती है; एक घोड़ा लगातार बंधे रहने से बूढ़ा हो जाता है; अपने पति के साथ यौन संपर्क की कमी एक महिला पर बुढ़ापा लाती है; और वस्त्र धूप में छोड़े जाने से पुराने हो जाते हैं।
- 4.18: बार-बार निम्नलिखित पर विचार करें: सही समय, सही दोस्त, सही जगह, आय का सही साधन, खर्च करने के सही तरीके, और जिनसे आप अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं।
- 4.19: दो बार पैदा हुए अग्नि (अग्नि) के लिए भगवान का एक प्रतिनिधि है। सर्वोच्च भगवान अपने भक्तों के दिल में रहते हैं। औसत बुद्धिमत्ता (अल्पा-बुद्धी या कानिस्ता-आदिकारी) भगवान को केवल उनकी श्रीमत में देखते हैं, लेकिन व्यापक दृष्टि वाले लोग सर्वोच्च भगवान को हर जगह देखते हैं।
Chanakya Neeti in Hindi Fifth Chapter 5 | चाणक्य नीति : पांचवां अध्याय
- 5.1: अग्नि दो बार जन्मे लोगों के लिए पूजनीय है; अन्य जातियों के लिए ब्राह्मण; पत्नी के लिए पति; और वह अतिथि जो सभी के लिए दोपहर के भोजन पर भोजन के लिए आता है।
- 5.2: चूँकि सोने को रगड़ने, काटने, गर्म करने और पीटने से चार तरीकों से परखा जाता है – इसलिए मनुष्य को इन चार चीजों से परखा जाना चाहिए: उसका त्याग, उसका आचरण, उसके गुण और उसके कार्य।
- 5.3: यदि आप पर मुसीबत आती नहीं है तो उससे सावधान रहे. लेकिन यदि मुसीबत आ जाती है तो किसी भी तरह उससे छुटकारा पाए.
- 5.4: अनेक व्यक्ति जो एक ही गर्भ से पैदा हुए है या एक ही नक्षत्र में पैदा हुए है वे एकसे नहीं रहते. उसी प्रकार जैसे बेर के झाड के सभी बेर एक से नहीं रहते.
- 5.5: वह व्यक्ति जिसके हाथ स्वच्छ है कार्यालय में काम नहीं करना चाहता. जिस ने अपनी कामना को ख़तम कर दिया है, वह शारीरिक शृंगार नहीं करता, जो आधा पढ़ा हुआ व्यक्ति है वो मीठे बोल बोल नहीं सकता. जो सीधी बात करता है वह धोका नहीं दे सकता.
- 5.6: मूढ़ लोग बुद्धिमानो से इर्ष्या करते है. गलत मार्ग पर चलने वाली औरत पवित्र स्त्री से इर्ष्या करती है. बदसूरत औरत खुबसूरत औरत से इर्ष्या करती है.
- 5.7: खाली बैठने से अभ्यास का नाश होता है. दुसरो को देखभाल करने के लिए देने से पैसा नष्ट होता है. गलत ढंग से बुवाई करने वाला किसान अपने बीजो का नाश करता है. यदि सेनापति नहीं है तो सेना का नाश होता है.
- 5.8: अर्जित विद्या अभ्यास से सुरक्षित रहती है.; घर की इज्जत अच्छे व्यवहार से सुरक्षित रहती है.; अच्छे गुणों से इज्जतदार आदमी को मान मिलता है.; किसीभी व्यक्ति का गुस्सा उसकी आँखों में दिखता है.
- 5.9: धर्मं की रक्षा पैसे से होती है.;ज्ञान की रक्षा जमकर आजमाने से होती है.;राजा से रक्षा उसकी बात मानने से होती है.;घर की रक्षा एक दक्ष गृहिणी से होती है.
- 5.10: जो वैदिक ज्ञान की निंदा करते है, शास्र्त सम्मत जीवनशैली की मजाक उड़ाते है, शांतीपूर्ण स्वभाव के लोगो की मजाक उड़ाते है, बिना किसी आवश्यकता के दुःख को प्राप्त होते है.
- 5.11: दान गरीबी को ख़त्म करता है. अच्छा आचरण दुःख को मिटाता है. विवेक अज्ञान को नष्ट करता है. जानकारी भय को समाप्त करती है.
- 5.12: वासना के समान दुष्कर कोई रोग नहीं. मोह के समान कोई शत्रु नहीं. क्रोध के समान अग्नि नहीं. स्वरुप ज्ञान के समान कोई बोध नहीं.
- 5.13: व्यक्ति अकेले ही पैदा होता है. अकेले ही मरता है. अपने कर्मो के शुभ अशुभ परिणाम अकेले ही भोगता है. अकेले ही नरक में जाता है या सदगति प्राप्त करता है.
- 5.14: जिसने अपने स्वरुप को जान लिया उसके लिए स्वर्ग तो तिनके के समान है. एक पराक्रमी योद्धा अपने जीवन को तुच्छ मानता है. जिसने अपनी कामना को जीत लिया उसके लिए स्त्री भोग का विषय नहीं. उसके लिए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तुच्छ है जिसके मन में कोई आसक्ति नहीं.
- 5.15: जब आप सफ़र पर जाते हो तो विद्यार्जन ही आपका मित्र है. घर में पत्नी मित्र है. बीमार होने पर दवा मित्र है. अर्जित पुण्य मृत्यु के बाद एकमात्र मित्र है.
- 5.16: समुद्र में होने वाली वर्षा व्यर्थ है. जिसका पेट भरा हुआ है उसके लिए अन्न व्यर्थ है. पैसे वाले आदमी के लिए भेट वस्तु का कोई अर्थ नहीं. दिन के समय जलता दिया व्यर्थ है.
- 5.17: वर्षा के जल के समान कोई जल नहीं. खुदकी शक्ति के समान कोई शक्ति नहीं. नेत्र ज्योति के समान कोई प्रकाश नहीं. अन्न से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं.
- 5.18: निर्धन को धन की कामना. पशु को वाणी की कामना. लोगो को स्वर्ग की कामना. देव लोगो को मुक्ति की कामना.
- 5.19: सत्य की शक्ति ही इस दुनिया को धारण करती है. सत्य की शक्ति से ही सूर्य प्रकाशमान है, हवाए चलती है, सही में सब कुछ सत्य पर आश्रित है.
- 5.20: लक्ष्मी जो संपत्ति की देवता है, वह चंचला है. हमारी श्वास भी चंचला है. हम कितना समय जियेंगे इसका कोई ठिकाना नहीं. हम कहा रहेंगे यह भी पक्का नहीं. कोई बात यहाँ पर पक्की है तो यह है की हमारा अर्जित पुण्य कितना है.
- 5.21: आदमियों में नाई सबसे धूर्त है. कौवा पक्षीयों में धूर्त है. लोमड़ी प्राणीयो में धूर्त है. औरतो में लम्पट औरत सबसे धूर्त है.
- 5.22: ये सब आपके पिता है…१. जिसने आपको जन्म दिया. २. जिसने आपका यज्ञोपवित संस्कार किया. ३. जिसने आपको पढाया. ४. जिसने आपको भोजन दिया. ५. जिसने आपको भयपूर्ण परिस्थितियों में बचाया.
- 5.23: इन सब को आपनी माता समझें .१. राजा की पत्नी २. गुरु की पत्नी ३. मित्र की पत्नी ४. पत्नी की माँ ५. आपकी माँ.
Chanakya Neeti in Hindi six Chapter 6 | चाणक्य नीति : छठा अध्याय
- “6.1: श्रवण करने से र्मं का ज्ञान होता है, द्वेष दूर होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और माया की आसक्ति से मुक्ति होती है|”
- “6.2: पक्षीयों में कौवा नीच है. पशुओ में कुत्ता नीच है. जो तपस्वी पाप करता है वो घिनौना है. लेकिन जो दूसरो की निंदा करता है वह सबसे बड़ा चांडाल है|”
- “6.3: राख से घिसने पर पीतल चमकता है . ताम्बा इमली से साफ़ होता है. औरते प्रदर से शुद्ध होती है. नदी बहती रहे तो साफ़ रहती है|”
- “6.4: राजा, ब्राह्मण और तपस्वी योगी जब दुसरे देश जाते है, तो आदर पाते है. लेकिन औरत यदि भटक जाती है तो बर्बाद हो जाती है.
- “6.5: धनवान व्यक्ति के कई मित्र होते है. उसके कई सम्बन्धी भी होते है. धनवान को ही आदमी कहा जाता है और पैसेवालों को ही पंडित कह कर नवाजा जाता है|”
- “6.6: सर्व शक्तिमान के इच्छा से ही बुद्धि काम करती है, वही कर्मो को नियंत्रीत करता है. उसी की इच्छा से आस पास में मदद करने वाले आ जाते है|”
- “6.7: काल सभी जीवो को निपुणता प्रदान करता है. वही सभी जीवो का संहार भी करता है. वह जागता रहता है जब सब सो जाते है. काल को कोई जीत नहीं सकता|”
- “6.8: जो जन्म से अंध है वो देख नहीं सकते. उसी तरह जो वासना के अधीन है वो भी देख नहीं सकते. अहंकारी व्यक्ति को कभी ऐसा नहीं लगता की वह कुछ बुरा कर रहा है. और जो पैसे के पीछे पड़े है उनको उनके कर्मो में कोई पाप दिखाई नहीं देता|”
- “6.9: जीवात्मा अपने कर्म के मार्ग से जाता है. और जो भी भले बुरे परिणाम कर्मो के आते है उन्हें भोगता है. अपने ही कर्मो से वह संसार में बंधता है और अपने ही कर्मो से बन्धनों से छूटता है|”
- “6.10: राजा को उसके नागरिको के पाप लगते है. राजा के यहाँ काम करने वाले पुजारी को राजा के पाप लगते है. पति को पत्नी के पाप लगते है. गुरु को उसके शिष्यों के पाप लगते है|”
- “6.11: अपने ही घर में व्यक्ति के ये शत्रु हो सकते है…उसका बाप यदि वह हरदम कर्ज में डूबा रहता है;उसकी माँ यदि वह दुसरे पुरुष से संग करती है.सुन्दर पत्नी; वह लड़का जिसने शिक्षा प्राप्त नहीं की|”
- “6.12: एक लालची आदमी को भेट वास्तु दे कर संतुष्ट करे. एक कठोर आदमी को हाथ जोड़कर संतुष्ट करे. एक मुर्ख को सम्मान देकर संतुष्ट करे. एक विद्वान् आदमी को सच बोलकर संतुष्ट करे|”
- “6.13: एक बेकार राज्य का राजा होने से यह बेहतर है की व्यक्ति किसी राज्य का राजा ना हो.;एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो.;एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो.;एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो|”
- “6.14: एक बेकार राज्य में लोग सुखी कैसे हो? एक पापी से किसी शान्ति की प्राप्ति कैसे हो? एक बुरी पत्नी के साथ घर में कौनसा सुख प्राप्त हो सकता है. एक नालायक शिष्य को शिक्षा देकर कैसे कीर्ति प्राप्त हो?”
- “6.15: शेर से एक बात सीखे. बगुले से एक. मुर्गे से चार. कौवे से पाच. कुत्ते से छह. और गधे से तीन|”
- “6.16: शेर से यह बढ़िया बात सीखे की आप जो भी करना चाहते हो एकदिली से और जबरदस्त प्रयास से करे|”
- “6.17: बुद्धिमान व्यक्ति अपने इन्द्रियों को बगुले की तरह वश में करते हुए अपने लक्ष्य को जगह, समय और योग्यता का पूरा ध्यान रखते हुए पूर्ण करे|”
- “6.18: मुर्गे से हे चार बाते सीखे…१. सही समय पर उठे. २. नीडर बने और लढ़े. ३. संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे. ४. अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे|”
- “6.19: कौवे से ये पाच बाते सीखे… १. अपनी पत्नी के साथ एकांत में प्रणय करे. २. नीडरता ३. उपयोगी वस्तुओ का संचय करे. ४. सभी ओर दृष्टी घुमाये. ५. दुसरो पर आसानी से विश्वास ना करे|”
- “6.20: कुत्ते से ये बाते सीखे १. बहुत भूख हो पर खाने को कुछ ना मिले या कम मिले तो भी संतोष करे. २. गाढ़ी नींद में हो तो भी क्षण में उठ जाए. ३. अपने स्वामी के प्रति बेहिचक इमानदारी रखे ४. नीडरता|”
- “6.21: गधे से ये तीन बाते सीखे. १. अपना बोझा ढोना ना छोड़े. २. सर्दी गर्मी की चिंता ना करे. ३. सदा संतुष्ट रहे.|”
- “6.22: जो व्यक्ति इन बीस गुणों पर अमल करेगा वह जो भी करेगा सफल होगा|”
Chanakya Neeti Seven Chapter 7| चाणक्य नीति : सातवाँ अध्याय
- “7.1:एक बुद्धिमान व्यक्ति को निम्नलिखित बातें किसी को नहीं बतानी चाहिए ..१. की उसकी दौलत खो चुकी है.२. उसे क्रोध आ गया है.३. उसकी पत्नी ने जो गलत व्यवहार किया.४. लोगो ने उसे जो गालिया दी.५. वह किस प्रकार बेइज्जत हुआ है|”
- “7.2:जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम-धंदा करने में शर्माता नहीं है वो सुखी हो जाता है|”
- “7.3:जो सुख और शांति का अनुभव स्वरुप ज्ञान को प्राप्त करने से होता है, वैसा अनुभव जो लोभी लोग धन के लोभ में यहाँ वहा भटकते रहते है उन्हें नहीं होता|”
- “7.4:व्यक्ति नीचे दी हुए ३ चीजो से संतुष्ट रहे…
१. खुदकी पत्नी २. वह भोजन जो विधाता ने प्रदान किया. ३. उतना धन जितना इमानदारी से मिल गया|”
- “7.5:लेकिन व्यक्ति को नीचे दी हुई ३ चीजो से संतुष्ट नहीं होना चाहिए…
१. अभ्यास २. भगवान् का नाम स्मरण. ३. परोपकार|”
- “7.6:इन दोनों के मध्य से कभी ना जाए..१. दो ब्राह्मण.२. ब्राह्मण और उसके यज्ञ में जलने वाली अग्नि.३. पति पत्नी.४. स्वामी और उसका चाकर.५. हल और बैल|”
- “7.7:अपना पैर कभी भी इनसे न छूने दे…१. अग्नि २. अध्यात्मिक गुरु ३. ब्राह्मण ४. गाय ५. एक कुमारिका ६. एक उम्र में बड़ा आदमी. ५. एक बच्चा|”
- “7.8:हाथी से हजार गज की दुरी रखे.घोड़े से सौ की.सिंग वाले जानवर से दस की.लेकिन दुष्ट जहा हो उस जगह से ही निकल जाए|”
- “7.9:हाथी को अंकुश से नियंत्रित करे.घोड़े को थप थपा के.सिंग वाले जानवर को डंडा दिखा के.एक बदमाश को तलवार से|”
- “7.10:ब्राह्मण अच्छे भोजन से तृप्त होते है. मोर मेघ गर्जना से. साधू दुसरो की सम्पन्नता देखकर और दुष्ट दुसरो की विपदा देखकर|”
- “7.11:एक शक्तिशाली आदमी से उसकी बात मानकर समझौता करे. एक दुष्ट का प्रतिकार करे. और जिनकी शक्ति आपकी शक्ति के बराबर है उनसे समझौता विनम्रता से या कठोरता से करे|”
- “7.12:एक राजा की शक्ति उसकी शक्तिशाली भुजाओ में है. एक ब्राह्मण की शक्ति उसके स्वरुप ज्ञान में है. एक स्त्री की शक्ति उसकी सुन्दरता, तारुण्य और मीठे वचनों में है|”
- “7.13:अपने व्यवहार में बहुत सीधे ना रहे. आप यदि वन जाकर देखते है तो पायेंगे की जो पेड़ सीधे उगे उन्हें काट लिया गया और जो पेड़ आड़े तिरछे है वो खड़े है|”
- “7.14:हंस वहा रहते है जहा पानी होता है. पानी सूखने पर वे उस जगह को छोड़ देते है. आप किसी आदमी को ऐसा व्यवहार ना करने दे की वह आपके पास आता जाता रहे|”
- “7.15:संचित धन खर्च करने से बढ़ता है. उसी प्रकार जैसे ताजा जल जो अभी आया है बचता है, यदि पुराने स्थिर जल को निकल बहार किया जाये|”
- “7.16:वह व्यक्ति जिसके पास धन है उसके पास मित्र और सम्बन्धी भी बहोत रहते है. वही इस दुनिया में टिक पाता है और उसीको इज्जत मिलती है|”
- “7.17:स्वर्ग में निवास करने वाले देवता लोगो में और धरती पर निवास करने वाले लोगो में कुछ साम्य पाया जाता है.उनके समान गुण है १. परोपकार २. मीठे वचन ३. भगवान् की आराधना. ४. ब्राह्मणों के जरूरतों की पूर्ति|”
- “7.18:नरक में निवास करने वाले और धरती पर निवास करने वालो में साम्यता – १. अत्याधिक क्रोध २. कठोर वचन ३. अपने ही संबंधियों से शत्रुता ४. नीच लोगो से मैत्री ५. हीन हरकते करने वालो की चाकरी|”
- “7.19:यदि आप शेर की गुफा में जाते हो तो आप को हाथी के माथे का मणि मिल सकता है. लेकिन यदि आप लोमड़ी जहा रहती है वहा जाते हो तो बछड़े की पूछ या गधे की हड्डी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा|”
- “7.20:एक अनपढ़ आदमी की जिंदगी किसी कुत्ते की पूछ की तरह बेकार है. उससे ना उसकी इज्जत ही ढकती है और ना ही कीड़े मक्खियों को भागने के काम आती है|”
- “7.21:यदि आप दिव्यता चाहते है तो आपके वाचा, मन और इन्द्रियों में शुद्धता होनी चाहिए. उसी प्रकार आपके ह्रदय में करुणा होनी चाहिए|”
- “7.22:जिस प्रकार एक फूल में खुशबु है. तील में तेल है. लकड़ी में अग्नि है. दूध में घी है. गन्ने में गुड है. उसी प्रकार यदि आप ठीक से देखते हो तो हर व्यक्ति में परमात्मा है|”
Chanakya Niti Eight Chapter 8 | चाणक्य नीति : आठवाँ अध्याय
- “8.1:नीच वर्ग के लोग दौलत चाहते है, मध्यम वर्ग के दौलत और इज्जत, लेकिन उच्च वर्ग के लोग सम्मान चाहते है क्यों की सम्मान ही उच्च लोगो की असली दौलत है|”
- “8.2:हे विद्वान् पुरुष ! अपनी संपत्ति केवल पात्र को ही दे और दूसरो को कभी ना दे. जो जल बादल को समुद्र देता है वह बड़ा मीठा होता है. बादल वर्षा करके वह जल पृथ्वी के सभी चल अचल जीवो को देता है और फिर उसे समुद्र को लौटा देता है|”
- “8.3:विद्वान् लोग जो तत्त्व को जानने वाले है उन्होंने कहा है की मास खाने वाले चांडालो से हजार गुना नीच है. इसलिए ऐसे आदमी से नीच कोई नहीं|”
- “8.4:शरीर पर मालिश करने के बाद, स्मशान में चिता का धुआ शरीर पर आने के बाद, सम्भोग करने के बाद, दाढ़ी बनाने के बाद जब तक आदमी नहा ना ले वह चांडाल रहता है|”
- “8.5:जल अपच की दवा है. जल चैतन्य निर्माण करता है, यदि उसे भोजन पच जाने के बाद पीते है. पानी को भोजन के बाद तुरंत पीना विष पिने के समान है|”
- “8.6:यदि ज्ञान को उपयोग में ना लाया जाए तो वह खो जाता है. आदमी यदि अज्ञानी है तो खो जाता है. सेनापति के बिना सेना खो जाती है. पति के बिना पत्नी खो जाती है|”
- “8.7:वह आदमी अभागा है जो अपने बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु देखता है. वह भी अभागा है जो अपनी सम्पदा संबंधियों को सौप देता है. वह भी अभागा है जो खाने के लिए दुसरो पर निर्भर है|”
- “8.8:यह बाते बेकार है. वेद मंत्रो का उच्चारण करना लेकिन निहित यज्ञ कर्मो को ना करना. यज्ञ करना लेकिन बाद में लोगो को दान दे कर तृप्त ना करना. पूर्णता तो भक्ति से ही आती है. भक्ति ही सभी सफलताओ का मूल है|”
- “8.9:एक संयमित मन के समान कोई तप नहीं. संतोष के समान कोई सुख नहीं. लोभ के समान कोई रोग नहीं. दया के समान कोई गुण नहीं|”
- “8.10:क्रोध साक्षात् यम है. तृष्णा नरक की और ले जाने वाली वैतरणी है. ज्ञान कामधेनु है. संतोष ही तो नंदनवन है|”
- “8.11:नीति की उत्तमता ही व्यक्ति के सौंदर्य का गहना है. उत्तम आचरण से व्यक्ति उत्तरोत्तर ऊँचे लोक में जाता है. सफलता ही विद्या का आभूषण है. उचित विनियोग ही संपत्ति का गहना है|”
- “8.12:निति भ्रष्ट होने से सुन्दरता का नाश होता है. हीन आचरण से अच्छे कुल का नाश होता है. पूर्णता न आने से विद्या का नाश होता है. उचित विनियोग के बिना धन का नाश होता है|”
- “8.13:जो जल धरती में समां गया वो शुद्ध है. परिवार को समर्पित पत्नी शुद्ध है. लोगो का कल्याण करने वाला राजा शुद्ध है. वह ब्राह्मण शुद्ध है जो संतुष्ट है|”
- “8.14:असंतुष्ट ब्राह्मण, संतुष्ट राजा, लज्जा रखने वाली वेश्या, कठोर आचरण करने वाली गृहिणी ये सभी लोग विनाश को प्राप्त होते है|”
- “8.15:क्या करना उचे कुल का यदि बुद्धिमत्ता ना हो. एक नीच कुल में उत्पन्न होने वाले विद्वान् व्यक्ति का सम्मान देवता भी करते है|”
- “8.16:विद्वान् व्यक्ति लोगो से सम्मान पाता है. विद्वान् उसकी विद्वत्ता के लिए हर जगह सम्मान पाता है. यह बिलकुल सच है की विद्या हर जगह सम्मानित है|”
- “8.17:जो लोग दिखने में सुन्दर है, जवान है, ऊँचे कुल में पैदा हुए है, वो बेकार है यदि उनके पास विद्या नहीं है. वो तो पलाश के फूल के समान है जो दिखते तो अच्छे है पर महकते नहीं|”
- “8.18:यह धरती उन लोगो के भार से दबी जा रही है, जो मास खाते है, दारू पीते है, बेवकूफ है, वे सब तो आदमी होते हुए पशु ही है|”
- “8.19:उस यज्ञ के समान कोई शत्रु नहीं जिसके उपरांत लोगो को बड़े पैमाने पर भोजन ना कराया जाए. ऐसा यज्ञ राज्यों को ख़तम कर देता है. यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे ख़तम कर देता है. और यदि यजमान लोगो को दान एवं भेटवस्तू ना दे तो वह भी यज्ञ द्वारा ख़तम हो जाता है.|”
Chanakya Niti Nine Chapter 9| चाणक्य नीति : नौवां अध्याय
- “9.1:तात, यदि तुम जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे तुम विष को त्याग देते हो. इन सब को छोड़कर हे तात तितिक्षा, ईमानदारी का आचरण, दया, शुचिता और सत्य इसका अमृत पियो|”
- “9.2:वो कमीने लोग जो दूसरो की गुप्त खामियों को उजागर करते हुए फिरते है, उसी तरह नष्ट हो जाते है जिस तरह कोई साप चीटियों के टीलों में जा कर मर जाता है|”
- “9.3:शायद किसीने ब्रह्माजी, जो इस सृष्टि के निर्माता है, को यह सलाह नहीं दी की वह …सुवर्ण को सुगंध प्रदान करे.गन्ने के झाड को फल प्रदान करे.चन्दन के वृक्ष को फूल प्रदान करे.विद्वान् को धन प्रदान करे.राजा को लम्बी आयु प्रदान करे|”
- “9.4:अमृत सबसे बढ़िया औषधि है.इन्द्रिय सुख में अच्छा भोजन सर्वश्रेष्ठ सुख है.नेत्र सभी इन्द्रियों में श्रेष्ठ है.मस्तक शरीर के सभी भागो मे श्रेष्ठ है|”
- “9.5:कोई संदेशवाहक आकाश में जा नहीं सकता और आकाश से कोई खबर आ नहीं सकती. वहा रहने वाले लोगो की आवाज सुनाई नहीं देती. और उनके साथ कोई संपर्क नहीं हो सकता. इसीलिए वह ब्राह्मण जो सूर्य और चन्द्र ग्रहण की भविष्य वाणी करता है, उसे विद्वान मानना चाहिए|”
- “9.6:इन सातो को जगा दे यदि ये सो जाए…१. विद्यार्थी २. सेवक ३. पथिक ४. भूखा आदमी ५. डरा हुआ आदमी ६. खजाने का रक्षक ७. खजांची|”
- “9.7:इन सातो को नींद से नहीं जगाना चाहिए…१. साप २. राजा ३. बाघ ४. डंख करने वाला कीड़ा ५. छोटा बच्चा ६. दुसरो का कुत्ता ७. मुर्ख|”
- “9.8:जिन्होंने वेदों का अध्ययन पैसा कमाने के लिए किया और जो नीच काम करने वाले लोगो का दिया हुआ अन्न खाते है उनके पास कौनसी शक्ति हो सकती है. वो ऐसे भुजंगो के समान है जो दंश नहीं कर सकते|”
- “9.9:जिसके डाटने से सामने वाले के मन में डर नहीं पैदा होता और प्रसन्न होने के बाद जो सामने वाले को कुछ देता नहीं है. वो ना किसी की रक्षा कर सकता है ना किसी को नियंत्रित कर सकता है. ऐसा आदमी भला क्या कर सकता है|”
- “9.10:यदि नाग अपना फना खड़ा करे तो भले ही वह जहरीला ना हो तो भी उसका यह करना सामने वाले के मन में डर पैदा करने को पर्याप्त है. यहाँ यह बात कोई माइना नहीं रखती की वह जहरीला है की नहीं|”
- “9.11:सुबह उठकर दिन भर जो दाव आप लगाने वाले है उसके बारे में सोचे. दोपहर को अपनी माँ को याद करे. रात को चोरो को ना भूले|”
- “9.12:आपको इन्द्र के समान वैभव प्राप्त होगा यदि आप..अपने भगवान् के गले की माला अपने हाथो से बनाये.अपने भगवान् के लिए चन्दन अपने हाथो से घिसे. अपने हाथो से पवित्र ग्रंथो को लिखे|”
- “9.13:गरीबी पर धैर्य से मात करे. पुराने वस्त्रो को स्वच्छ रखे. बासी अन्न को गरम करे. अपनी कुरूपता पर अपने अच्छे व्यवहार से मात करे|”
Chanakya Niti Tenth Chapter 10 | चाणक्य नीति : दसवां अध्याय
- “10.1:जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है|”
- “10.2:हम अपना हर कदम फूक फूक कर रखे. हम छाना हुआ जल पिए. हम वही बात बोले जो शास्त्र सम्मत है. हम वही काम करे जिसके बारे हम सावधानीपुर्वक सोच चुके है|”
- “10.3:जिसे अपने इन्द्रियों की तुष्टि चाहिए, वह विद्या अर्जन करने के सभी विचार भूल जाए. और जिसे ज्ञान चाहिए वह अपने इन्द्रियों की तुष्टि भूल जाये. जो इन्द्रिय विषयों में लगा है उसे ज्ञान कैसा, और जिसे ज्ञान है वह व्यर्थ की इन्द्रिय तुष्टि में लगा रहे यह संभव नहीं|”
- “10.4:वह क्या है जो कवी कल्पना में नहीं आ सकता. वह कौनसी बात है जिसे करने में औरत सक्षम नहीं है. ऐसी कौनसी बकवास है जो दारू पिया हुआ आदमी नहीं करता. ऐसा क्या है जो कौवा नहीं खाता|”
- “10.5:नियति एक भिखारी को राजा और राजा को भिखारी बनाती है. वह एक अमीर आदमी को गरीब और गरीब को अमीर|”
- “10.6:भिखारी यह कंजूस आदमी का दुश्मन है. एक अच्छा सलाहकार एक मुर्ख आदमी का शत्रु है.वह पत्नी जो पर पुरुष में रूचि रखती है, उसके लिए उसका पति ही उसका शत्रु है.जो चोर रात को काम करने निकलता है, चन्द्रमा ही उसका शत्रु है|”
- “10.7:जिनके पास यह कुछ नहीं है…विद्या.तप.ज्ञान.अच्छा स्वभाव.गुण.दया भाव….वो धरती पर मनुष्य के रूप में घुमने वाले पशु है. धरती पर उनका भार है|”
- “10.8:जिनके भेजे खाली है, वो कोई उपदेश नहीं समझते. यदि बास को मलय पर्वत पर उगाया जाये तो भी उसमे चन्दन के गुण नहीं आते|”
- “10.9:जिसे अपनी कोई अकल नहीं उसकी शास्त्र क्या भलाई करेंगे. एक अँधा आदमी आयने का क्या करेगा|”
- “10.10:एक बुरा आदमी सुधर नहीं सकता. आप पृष्ठ भाग को चाहे जितना साफ़ करे वो श्रेष्ठ भागो की बराबरी नहीं कर सकता|”
- “10.11:अपने निकट संबंधियों का अपमान करने से जान जाती है.दुसरो का अपमान करने से दौलत जाती है.राजा का अपमान करने से सब कुछ जाता है.एक ब्राह्मण का अपमान करने से कुल का नाश हो जाता है|”
- “10.12:यह बेहतर है की आप जंगल में एक झाड के नीचे रहे, जहा बाघ और हाथी रहते है, उस जगह रहकर आप फल खाए और जलपान करे, आप घास पर सोये और पुराने पेड़ो की खाले पहने. लेकिन आप अपने सगे संबंधियों में ना रहे यदि आप निर्धन हो गए है|”
- “10.13:ब्राह्मण एक वृक्ष के समान है. उसकी प्रार्थना ही उसका मूल है. वह जो वेदों का गान करता है वही उसकी शाखाए है. वह जो पुण्य कर्म करता है वही उसके पत्ते है. इसीलिए उसने अपने मूल को बचाना चाहिए. यदि मूल नष्ट हो जाता है तो शाखाये भी ना रहेगी और पत्ते भी|”
- “10.14:लक्ष्मी मेरी माता है. विष्णु मेरे पिता है. वैष्णव जन मेरे सगे सम्बन्धी है. तीनो लोक मेरा देश है|”
- “10.15:रात्रि के समय कितने ही प्रकार के पंछी वृक्ष पर विश्राम करते है. भोर होते ही सब पंछी दसो दिशाओ में उड़ जाते है. हम क्यों भला दुःख करे यदि हमारे अपने हमें छोड़कर चले गए|”
- “10.16:जिसके पास में विद्या है वह शक्तिशाली है. निर्बुद्ध पुरुष के पास क्या शक्ति हो सकती है? एक छोटा खरगोश भी चतुराई से मदमस्त हाथी को तालाब में गिरा देता है|”
- “10.17:हे विश्वम्भर तू सबका पालन करता है. मै मेरे गुजारे की क्यों चिंता करू जब मेरा मन तेरी महिमा गाने में लगा हुआ है. आपके अनुग्रह के बिना एक माता की छाती से दूध नहीं बह सकता और शिशु का पालन नहीं हो सकता. मै हरदम यही सोचता हुआ, हे यदु वंशियो के प्रभु, हे लक्ष्मी पति, मेरा पूरा समय आपकी ही चरण सेवा में खर्च करता हू|”
Chanakya Neeti Eleven Chapter 11 | चाणक्य नीति : ग्यारहवाँ अध्याय
- “11.1:उदारता, वचनों में मधुरता, साहस, आचरण में विवेक ये बाते कोई पा नहीं सकता ये मूल में होनी चाहिए|”
- “11.2:जो अपने समाज को छोड़कर दुसरे समाज को जा मिलता है, वह उसी राजा की तरह नष्ट हो जाता है जो अधर्म के मार्ग पर चलता है|”
- “11.3:हाथी का शरीर कितना विशाल है लेकिन एक छोटे से अंकुश से नियंत्रित हो जाता है.एक दिया घने अन्धकार का नाश करता है, क्या अँधेरे से दिया बड़ा है.एक कड़कती हुई बिजली एक पहाड़ को तोड़ देती है, क्या बिजली पहाड़ जितनी विशाल है.जी नहीं. बिलकुल नहीं. वही बड़ा है जिसकी शक्ति छा जाती है. इससे कोई फरक नहीं पड़ता की आकार कितना है|”
- “11.4:जो घर गृहस्थी के काम में लगा रहता है वह कभी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता. मॉस खाने वाले के ह्रदय में दया नहीं हो सकती. लोभी व्यक्ति कभी सत्य भाषण नहीं कर सकता. और एक शिकारी में कभी शुद्धता नहीं हो सकती|”
- “11.5:एक दुष्ट व्यक्ति में कभी पवित्रता उदीत नहीं हो सकती उसे चाहे जैसे समझा लो. नीम का वृक्ष कभी मीठा नहीं हो सकता आप चाहे उसकी शिखा से मूल तक घी और शक्कर छिड़क दे|”
- “11.6:आप चाहे सौ बार पवित्र जल में स्नान करे, आप अपने मन का मैल नहीं धो सकते. उसी प्रकार जिस प्रकार मदिरा का पात्र पवित्र नहीं हो सकता चाहे आप उसे गरम करके सारी मदिरा की भाप बना दे|”
- “11.7:इसमें कोई आश्चर्य नहीं की व्यक्ति उन बातो के प्रति अनुदगार कहता है जिसका उसे कोई ज्ञान नहीं. उसी प्रकार जैसे एक जंगली शिकारी की पत्नी हाथी के सर का मणि फेककर गूंजे की माला धारण करती है|”
- “11.8:जो व्यक्ति एक साल तक भोजन करते समय भगवान् का ध्यान करेगा और मुह से कुछ नहीं बोलेगा उसे एक हजार करोड़ वर्ष तक स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी|”
- “11.9:एक विद्यार्थी पूर्ण रूप से निम्न लिखित बातो का त्याग करे.१. काम २. क्रोध ३. लोभ ४. स्वादिष्ट भोजन की अपेक्षा. ५. शरीर का शृंगार ६. अत्याधिक जिज्ञासा ७. अधिक निद्रा ८. शरीर निर्वाह के लिए अत्याधिक प्रयास|”
- “11.10:वही सही में ब्राह्मण है जो केवल एक बार के भोजन से संतुष्ट रहे, जिस पर १६ संस्कार किये गए हो, जो अपनी पत्नी के साथ महीने में केवल एक दिन समागम करे. माहवारी समाप्त होने के दुसरे दिन|”
- “11.11:वह ब्राह्मण जो दुकानदारी में लगा है, असल में वैश्य ही है.निम्न स्तर के लोगो से जिस व्यवसाय में संपर्क आता है, वह व्यवसाय ब्राह्मण को शुद्र बना देता है|”
- “11.12:वह ब्राह्मण जो दुसरो के काम में अड़ंगे डालता है, जो दम्भी है, स्वार्थी है, धोखेबाज है, दुसरो से घृणा करता है और बोलते समय मुह में मिठास और ह्रदय में क्रूरता रखता है, वह एक बिल्ली के समान है|”
- “11.13:एक ब्राह्मण जो तालाब को, कुए को, टाके को, बगीचे को और मंदिर को नष्ट करता है, वह म्लेच्छ है|”
- “11.14:वह ब्राह्मण जो भगवान् के मूर्ति की सम्पदा चुराता है और वह अध्यात्मिक गुरु जो दुसरे की पत्नी के साथ समागम करता है और जो अपना गुजारा करने के लिए कुछ भी और सब कुछ खाता है वह चांडाल है|”
- “11.15:एक गुणवान व्यक्ति को वह सब कुछ दान में देना चाहिए जो उसकी आवश्यकता से अधिक है. केवल दान के कारण ही कर्ण, बाली और राजा विक्रमादित्य आज तक चल रहे है. देखिये उन मधु मख्खियों को जो अपने पैर दुखे से धारती पर पटक रही है. वो अपने आप से कहती है ” आखिर में सब चला ही गया. हमने हमारे शहद को जो बचा कर रखा था, ना ही दान दिया और ना ही खुद खाया. अभी एक पल में ही कोई हमसे सब छीन कर चला गया|”
Chanakya Neeti Twelve Chapter 12 | चाणक्य नीति : बारहवां अध्याय
- “12.1:वह गृहस्थ भगवान् की कृपा को पा चुका है जिसके घर में आनंददायी वातावरण है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर वाणी बोलती है. जिसके पास अपनी जरूरते पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है. जो अपनी पत्नी से सुखपूर्ण सम्बन्ध रखता है. जिसके नौकर उसका कहा मानते है. जिसके घर में मेहमान का स्वागत किया जाता है. जिसके घर में मंगल दायी भगवान की पूजा रोज की जाती है. जहा स्वाद भरा भोजन और पान किया जाता है. जिसे भगवान् के भक्तो की संगती में आनंद आता है|”
- “12.2:जो एक संकट का सामना करने वाले ब्राह्मण को भक्ति भाव से अल्प दान देता है उसे बदले में विपुल लाभ होता है|”
- “12.3:वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगो के प्रति सह्रदय है. अच्छे लोगो के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगो से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छुपाते. दुश्मनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ो के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है|”
- “12.4:अरे लोमड़ी !!! उस व्यक्ति के शरीर को तुरंत छोड़ दे. जिसके हाथो ने कोई दान नहीं दिया. जिसके कानो ने कोई विद्या ग्रहण नहीं की. जिसके आँखों ने भगवान् का सच्चा भक्त नहीं देखा. जिसके पाँव कभी तीर्थ क्षेत्रो में नहीं गए. जिसने अधर्म के मार्ग से कमाए हुए धन से अपना पेट भरा. और जिसने बिना मतलब ही अपना सर ऊँचा उठा रखा है. अरे लोमड़ी !! उसे मत खा. नहीं तो तू दूषित हो जाएगी|”
- “12.5:धिक्कार है उन्हें जिन्हें भगवान् श्री कृष्ण जो माँ यशोदा के लाडले है उन के चरण कमलो में कोई भक्ति नहीं. मृदंग की ध्वनि धिक् तम धिक् तम करके ऐसे लोगो का धिक्कार करती है|”
- “12.6:बसंत ऋतू क्या करेगी यदि बास पर पत्ते नहीं आते. सूर्य का क्या दोष यदि उल्लू दिन में देख नहीं सकता. बादलो का क्या दोष यदि बारिश की बूंदे चातक पक्षी की चोच में नहीं गिरती. उसे कोई कैसे बदल सकता है जो किसी के मूल में है|”
- “12.7:एक दुष्ट के मन में सद्गुणों का उदय हो सकता है यदि वह एक भक्त से सत्संग करता है. लेकिन दुष्ट का संग करने से भक्त दूषित नहीं होता. जमीन पर जो फूल गिरता है उससे धरती सुगन्धित होती है लेकिन पुष्प को धरती की गंध नहीं लगती|”
- “12.8:उसका सही में कल्याण हो जाता है जिसे भक्त के दर्शन होते है. भक्त में तुरंत शुद्ध करने की क्षमता है. पवित्र क्षेत्र में तो लम्बे समय के संपर्क से शुद्धि होती है|”
- “12.9:एक अजनबी ने एक ब्राह्मण से पूछा. “बताइए, इस शहर में महान क्या है?”. ब्राह्मण ने जवाब दिया की खजूर के पेड़ का समूह महान है.अजनबी ने सवाल किया की यहाँ दानी कौन है? जवाब मिला के वह धोबी जो सुबह कपडे ले जाता है और शाम को लौटाता है
प्रश्न हुआ यहाँ सबसे काबिल कौन है. जवाब मिला यहाँ हर कोई दुसरे का द्रव्य और दारा हरण करने में काबिल है
प्रश्न हुआ की आप ऐसी जगह रह कैसे लेते हो? जवाब मिला की जैसे एक कीड़ा एक दुर्गन्ध युक्त जगह पर रहता है|”
- “12.10:वह घर जहा ब्राह्मणों के चरण कमल को धोया नहीं जाता, जहा वैदिक मंत्रो का जोर से उच्चारण नहीं होता. और जहा भगवान् को और पितरो को भोग नहीं लगाया जाता वह घर एक स्मशान है|”
- “12.11:सत्य मेरी माता है. अध्यात्मिक ज्ञान मेरा पिता है. धर्माचरण मेरा बंधू है. दया मेरा मित्र है. भीतर की शांति मेरी पत्नी है. क्षमा मेरा पुत्र है. मेरे परिवार में ये छह लोग है|”
- “12.12:हमारे शारीर नश्वर है. धन में तो कोई स्थायी भाव नहीं है. म्रत्यु हरदम हमारे निकट है. इसीलिए हमें तुरंत पुण्य कर्म करने चाहिए|”
- “12.13:ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन में आनंद आता है. गायो को ताज़ी कोमल घास खाने में. पत्नी को पति के सान्निध्य में. क्षत्रियो को युद्ध में आनंद आता है|”
- “12.14:जो दुसरे के पत्नी को अपनी माता मानता है, दुसरे को धन को मिटटी का ढेला, दुसरे के सुख दुःख को अपने सुख दुःख. उसी को सही दृष्टी प्राप्त है और वही विद्वान है|”
- “12.15:भगवान राम में ये सब गुण है. १. सद्गुणों में प्रीती. २. मीठे वचन ३. दान देने की तीव्र इच्छा शक्ति. ४. मित्रो के साथ कपट रहित व्यवहार. ५. गुरु की उपस्थिति में विनम्रता ६. मन की गहरी शान्ति. ६. शुद्ध आचरण ७. गुणों की परख ८. शास्त्र के ज्ञान की अनुभूति ८. रूप की सुन्दरता ९. भगवत भक्ति|”
- “12.16:कल्प तरु तो एक लकड़ी ही है. सुवर्ण का सुमेर पर्वत तो निश्छल है. चिंता मणि तो एक पत्थर है. सूर्य में ताप है. चन्द्रमा तो घटता बढ़ता रहता है. अमर्याद समुद्र तो खारा है. काम देव का तो शरीर ही जल गया. महाराज बलि तो राक्षस कुल में पैदा हुए. कामधेनु तो पशु ही है. भगवान् राम के समान कौन है|”
- “12.17:विद्या सफ़र में हमारा मित्र है. पत्नी घर पर मित्र है. औषधि रुग्ण व्यक्ति की मित्र है. मरते वक्त तो पुण्य कर्म ही मित्र है|”
- “12.18:राज परिवारों से शिष्टाचार सीखे. पंडितो से बोलने की कला सीखे. जुआरियो से झूट बोलना सीखे. एक औरत से छल सीखे|”
- “12.19:बिना सोचे समझे खर्च करने वाला, नटखट बच्चा जिसे अपना घर नहीं, झगड़े पर आमदा आदमी, अपनी पत्नी को दुर्लक्षित करने वाला, जो अपने आचरण पर ध्यान नहीं देता है. ये सब लोग जल्दी ही बर्बाद हो जायेंगे|”
- “12.20:एक विद्वान व्यक्ति ने अपने भोजन की चिंता नहीं करनी चाहिए. उसे सिर्फ अपने धर्म को निभाने की चिंता होनी चाहिए. हर व्यक्ति का भोजन पर जन्म से ही अधिकार है|”
- “12.21:जिसे दौलत, अनाज और विद्या अर्जित करने में और भोजन करने में शर्म नहीं आती वह सुखी रहता है.
- “12.22:बूंद बूंद से सागर बनता है. इसी तरह बूंद बूंद से ज्ञान, गुण और संपत्ति प्राप्त होते है|”
- “12.23:जो व्यक्ति अपने बुढ़ापे में भी मुर्ख है वह सचमुच ही मुर्ख है. उसी प्रकार जिस प्रकार इन्द्र वरुण का फल कितना भी पके मीठा नहीं होता|”
Chanakya Neeti Thirteen Chapter 13 | चाणक्य नीति : तेरहवां अध्याय
- “13.1:यदि आदमी एक पल के लिए भी जिए तो भी उस पल को वह शुभ कर्म करने में खर्च करे. एक कल्प तक जी कर कोई लाभ नहीं. दोनों लोक इस लोक और पर-लोक में तकलीफ होती है|”
- “13.2:हम उसके लिए ना पछताए जो बीत गया. हम भविष्य की चिंता भी ना करे. विवेक बुद्धि रखने वाले लोग केवल वर्तमान में जीते है|”
- “13.3:यह देवताओ का, संत जनों का और पालको का स्वभाव है की वे जल्दी प्रसन्न हो जाते है. निकट के और दूर के रिश्तेदार तब प्रसन्न होते है जब उनका आदर सम्मान किया जाए. उनके नहाने का, खाने पिने का प्रबंध किया जाए. पंडित जन जब उन्हें अध्यात्मिक सन्देश का मौका दिया जाता है तो प्रसन्न होते है|”
- “13.4:जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है तो यह पाच बाते तय हो जाती है…
१. कितनी लम्बी उम्र होगी. २. वह क्या करेगा ३. और ४. कितना धन और ज्ञान अर्जित करेगा. ५. मौत कब होगी|”
- “13.5:देखिये क्या आश्चर्य है? बड़े लोग अनोखी बाते करते है. वे पैसे को तो तिनके की तरह मामूली समझते है लेकिन जब वे उसे प्राप्त करते है तो उसके भार से और विनम्र होकर झुक जाते है|”
- “13.6:जो व्यक्ति अपने घर के लोगो से बहोत आसक्ति रखता है वह भय और दुःख को पाता है. आसक्ति ही दुःख का मूल है. जिसे सुखी होना है उसे आसक्ति छोडनी पड़ेगी|”
- “13.7:जो भविष्य के लिए तैयार है और जो किसी भी परिस्थिति को चतुराई से निपटता है. ये दोनों व्यक्ति सुखी है. लेकिन जो आदमी सिर्फ नसीब के सहारे चलता है वह बर्बाद होता है|”
- “13.8:यदि राजा पुण्यात्मा है तो प्रजा भी वैसी ही होती है. यदि राजा पापी है तो प्रजा भी पापी. यदि वह सामान्य है तो प्रजा सामान्य. प्रजा के सामने राजा का उद्हारण होता है. और वो उसका अनुसरण करती है|”
- “13.9:मेरी नजरो में वह आदमी मृत है जो जीते जी धर्म का पालन नहीं करता. लेकिन जो धर्म पालन में अपने प्राण दे देता है वह मरने के बाद भी बेशक लम्बा जीता है|”
- “13.10:जिस व्यक्ति ने न ही कोई ज्ञान संपादन किया, ना ही पैसा कमाया, मुक्ति के लिए जो आवश्यक है उसकी पूर्ति भी नहीं किया. वह एक निहायत बेकार जिंदगी जीता है जैसे के बकरी की गर्दन से झूलने वाले स्तन|”
- “13.11:जो नीच लोग होते है वो दुसरे की कीर्ति को देखकर जलते है. वो दुसरे के बारे में अपशब्द कहते है क्यों की उनकी कुछ करने की औकात नहीं है|”
- “13.12:यदि विषय बहुत प्रिय है तो वो बंधन में डालते है. विषय सुख की अनासक्ति से मुक्ति की और गति होती है. इसीलिए मुक्ति या बंधन का मूल मन ही है|”
- “13.13:जो आत्म स्वरुप का बोध होने से खुद को शारीर नहीं मानता, वह हरदम समाधी में ही रहता है भले ही उसका शरीर कही भी चला जाए|”
- “13.14:किस को सब सुख प्राप्त हुए जिसकी कामना की. सब कुछ भगवान् के हाथ में है. इसलिए हमें संतोष में जीना होगा|”
- “13.15:जिस प्रकार एक गाय का बछड़ा, हजारो गायो में अपनी माँ के पीछे चलता है उसी तरह कर्म आदमी के पीछे चलते है|”
- “13.16:जिस के काम करने में कोई व्यवस्था नहीं, उसे कोई सुख नहीं मिल सकता. लोगो के बीच या वन में. लोगो के मिलने से उसका ह्रदय जलता है और वन में तो कोई सुविधा होती ही नहीं|”
- “13.17:यदि आदमी उपकरण का सहारा ले तो गर्भजल से पानी निकाल सकता है. उसी तरह यदि विद्यार्थी अपने गुरु की सेवा करे तो गुरु के पास जो ज्ञान निधि है उसे प्राप्त करता है|”
- “13.18:हमें अपने कर्म का फल मिलता है. हमारी बुद्धि पर इसके पहले हमने जो कर्म किये है उसका निशान है. इसीलिए जो बुद्धिमान लोग है वो सोच विचार कर कर्म करते है|”
- “13.19:जिस व्यक्ति ने आपको अध्यात्मिक महत्ता का एक अक्षर भी पढाया उसकी पूजा करनी चाहिए. जो ऐसे गुरु का सम्मान नहीं करता वह सौ बार कुत्ते का जन्म लेता है. और आखिर चंडाल बनता है. चांडाल वह है जो कुत्ता खाता है|”
- “13.20:जब युग का अंत हो जायेगा तो मेरु पर्वत डिग जाएगा. जब कल्प का अंत होगा तो सातों समुद्र का पानी विचलित हो जायगा. लेकिन साधू कभी भी अपने अध्यात्मिक मार्ग से नहीं डिगेगा|”
- “13.21:इस धरती पर अन्न, जल और मीठे वचन ये असली रत्न है. मूर्खो को लगता है पत्थर के टुकड़े रत्न है|”
Chanakya Neeti Fourteen Chapter 14 | चाणक्य नीति : चौदहवां अध्याय
- “14.1:गरीबी, दुःख और एक बंदी का जीवन यह सब व्यक्ति के किए हुए पापो का ही फल है|”
- “14.2:आप दौलत, मित्र, पत्नी और राज्य गवाकर वापस पा सकते है लेकिन यदि आप अपनी काया गवा देते है तो वापस नहीं मिलेगी|”
- “14.3:यदि हम बड़ी संख्या में एकत्र हो जाए तो दुश्मन को हरा सकते है. उसी प्रकार जैसे घास के तिनके एक दुसरे के साथ रहने के कारण भारी बारिश में भी क्षय नहीं होते|”
- “14.4:पानी पर तेल, एक कमीने आदमी को बताया हुआ राज, एक लायक व्यक्ति को दिया हुआ दान और एक बुद्धिमान व्यक्ति को पढाया हुआ शास्त्रों का ज्ञान अपने स्वभाव के कारण तेजी से फैलते है.
- “14.5:वह व्यक्ति क्यों मुक्ति को नहीं पायेगा जो निम्न लिखित परिस्थितियों में जो उसके मन की अवस्था होती है उसे कायम रखता है…|”
जब वह धर्म के अनुदेश को सुनता है.जब वह स्मशान घाट में होता है.जब वह बीमार होता है.
- “14.6:वह व्यक्ति क्यों पूर्णता नहीं हासिल करेगा जो पश्चाताप में जो मन की अवस्था होती है, उसी अवस्था को काम करते वक़्त बनाए रखेंगा|”
- “14.7:हमें अभिमान नहीं होना चाहिए जब हम ये बाते करते है..१. परोपकार २. आत्म संयम ३. पराक्रम ४. शास्त्र का ज्ञान हासिल करना. ५. विनम्रता ६. नीतिमत्ता यह करते वक़्त अभिमान करने की इसलिए जरुरत नहीं क्यों की दुनिया बहुत कम दिखाई देने वाले दुर्लभ रत्नों से भरी पड़ी है|”
- “14.8:वह जो हमारे मन में रहता हमारे निकट है. हो सकता है की वास्तव में वह हमसे बहुत दूर हो. लेकिन वह व्यक्ति जो हमारे निकट है लेकिन हमारे मन में नहीं है वह हमसे बहोत दूर है|”
- “14.9:यदि हम किसीसे कुछ पाना चाहते है तो उससे ऐसे शब्द बोले जिससे वह प्रसन्न हो जाए. उसी प्रकार जैसे एक शिकारी मधुर गीत गाता है जब वह हिरन पर बाण चलाना चाहता है|”
- “14.10:जो व्यक्ति राजा से, अग्नि से, धर्म गुरु से और स्त्री से बहुत परिचय बढ़ाता है वह विनाश को प्राप्त होता है. जो व्यक्ति इनसे पूर्ण रूप से अलिप्त रहता है, उसे अपना भला करने का कोई अवसर नहीं मिलता. इसलिए इनसे सुरक्षित अंतर रखकर सम्बन्ध रखना चाहिए|”
- “14.11:हम इनके साथ बहुत सावधानी से पेश आये..१. अग्नि २. पानी ३. औरत ४. मुर्ख ५. साप ६. राज परिवार के सदस्य.
जब जब हम इनके संपर्क में आते है.क्योकि ये हमें एक झटके में मौत तक पंहुचा सकते है|”
- “14.12:वही व्यक्ति जीवित है जो गुणवान है और पुण्यवान है. लेकिन जिसके पास धर्म और गुण नहीं उसे क्या शुभ कामना दी जा सकती है|”
- “14.13:यदि आप दुनिया को एक काम करके जितना चाहते हो तो इन पंधरा को अपने काबू में रखो. इन्हें इधर उधर ना भागने दे.पांच इन्द्रियों के विषय १. जो दिखाई देता है २. जो सुनाई देता है ३. जिसकी गंध आती है ४. जिसका स्वाद आता है. ५. जिसका स्पर्श होता है.
पांच इन्द्रिय १. आँख २. कान ३. नाक ४. जिव्हा ५. त्वचा
पांच कर्मेन्द्रिय १. हाथ २. पाँव ३. मुह ४. जननेंद्रिय ५. गुदा|”
- “14.14:वही पंडित है जो वही बात बोलता है जो प्रसंग के अनुरूप हो. जो अपनी शक्ति के अनुरूप दुसरो की प्रेम से सेवा करता है. जिसे अपने क्रोध की मर्यादा का पता है|”
- “14.15:एक ही वस्तु देखने वालो की योग्यता के अनुरूप बिलग बिलग दिखती है. तप करने वाले में वस्तु को देखकर कोई कामना नहीं जागती. लम्पट आदमी को हर वास्तु में स्त्री दिखती है. कुत्ते को हर वस्तु में मांस दिखता है|”
- “14.16:जो व्यक्ति बुद्धिमान है वह निम्न लिखित बाते किसी को ना बताये…वह औषधि उसने कैसे बनायीं जो अच्छा काम कर रही है.वह परोपकार जो उसने किया.उसके घर के झगडे.उसकी उसके पत्नी के साथ होने वाली व्यक्तिगत बाते.उसने जो ठीक से न पका हुआ खाना खाया.जो गालिया उसने सुनी|”
- “14.17:कोकिल तब तक मौन रहते है. जबतक वो मीठा गाने की क़ाबलियत हासिल नहीं कर लेते और सबको आनंद नहीं पंहुचा सकते|”
- “14.18:हम निम्न लिखित बाते प्राप्त करे और उसे कायम रखे.हमें पुण्य कर्म के जो आशीर्वाद मिले.धन, अनाज, वो शब्द जो हमने हमारे अध्यात्मिक गुरु से सुने.कम पायी जाने वाली दवाइया.हम ऐसा नहीं करते है तो जीना मुश्किल हो जाएगा|”
- “14.19:कुसंग का त्याग करे और संत जानो से मेलजोल बढाए. दिन और रात गुणों का संपादन करे. उसपर हमेशा चिंतन करे जो शाश्वत है और जो अनित्य है उसे भूल जाए|”
Chanakya Neeti Fifteen Chapter 15 | चाणक्य नीति : पंद्रहवां अध्याय
- “15.1:वह व्यक्ति जिसका ह्रदय हर प्राणी मात्र के प्रति करुणा से पिघलता है. उसे जरुरत क्या है किसी ज्ञान की, मुक्ति की, सर के ऊपर जटाजूट रखने की और अपने शारीर पर राख मलने की|”
- “15.2:इस दुनिया में वह खजाना नहीं है जो आपको आपके सदगुरु ने ज्ञान का एक अक्षर दिया उसके कर्जे से मुक्त कर सके.
- “15.3:काटो से और दुष्ट लोगो से बचने के दो उपाय है. पैर में जुते पहनो और उन्हें इतना शर्मसार करो की वो अपना सर उठा ना सके और आपसे दूर रहे|”
- “15.4:जो अस्वच्छ कपडे पहनता है. जिसके दात साफ़ नहीं. जो बहोत खाता है. जो कठोर शब्द बोलता है. जो सूर्योदय के बाद उठता है. उसका कितना भी बड़ा व्यक्तित्व क्यों न हो, वह लक्ष्मी की कृपा से वंचित रह जायेगा|”
- “15.5:जब व्यक्ति दौलत खोता है तो उसके मित्र, पत्नी, नौकर, सम्बन्धी उसे छोड़कर चले जाते है. और जब वह दौलत वापस हासिल करता है तो ये सब लौट आते है. इसीलिए दौलत ही सबसे अच्छा रिश्तेदार है|”
- “15.6:पाप से कमाया हुआ पैसा दस साल रह सकता है. ग्यारवे साल में वह लुप्त हो जाता है, उसकी मुद्दल के साथ|”
- “15.7:एक महान आदमी जब कोई गलत काम करता है तो उसे कोई कुछ नहीं कहता. एक नीच आदमी जब कोई अच्छा काम भी करता है तो उसका धिक्कार होता है. देखिये अमृत पीना तो अच्छा है लेकिन राहू की मौत अमृत पिने से ही हुई. विष पीना नुकसानदायी है लेकिन भगवान् शंकर ने जब विष प्राशन किया तो विष उनके गले का अलंकार हो गया|”
- “15.8:एक सच्चा भोजन वह है जो ब्राह्मण को देने के बाद शेष है. प्रेम वह सत्य है जो दुसरो को दिया जाता है. खुद से जो प्रेम होता है वह नहीं. वही बुद्धिमत्ता है जो पाप करने से रोकती है. वही दान है जो बिना दिखावे के किया जाता है|”
- “15.9:यदि आदमी को परख नहीं है तो वह अनमोल रत्नों को तो पैर की धुल में पडा हुआ रखता है और घास को सर पर धारण करता है. ऐसा करने से रत्नों का मूल्य कम नहीं होता और घास के तिनको की महत्ता नहीं बढती. जब विवेक बुद्धि वाला आदमी आता है तो हर चीज को उसकी जगह दिखाता है|”
- “15.10:शास्त्रों का ज्ञान अगाध है. वो कलाए अनंत जो हमें सीखनी छाहिये. हमारे पास समय थोडा है. जो सिखने के मौके है उसमे अनेक विघ्न आते है. इसीलिए वही सीखे जो अत्यंत महत्वपूर्ण है. उसी प्रकार जैसे हंस पानी छोड़कर उसमे मिला हुआ दूध पी लेता है.
- “15.11:वह आदमी चंडाल है जो एक दूर से अचानक आये हुए थके मांदे अतिथि को आदर सत्कार दिए बिना रात्रि का भोजन खुद खाता है|”
- “15.12:एक व्यक्ति को चारो वेद और सभी धर्मं शास्त्रों का ज्ञान है. लेकिन उसे यदि अपने आत्मा की अनुभूति नहीं हुई तो वह उसी चमचे के समान है जिसने अनेक पकवानों को हिलाया लेकिन किसी का स्वाद नहीं चखा|”
- “15.13:वह लोग धन्य है, ऊँचे उठे हुए है जिन्होंने संसार समुद्र को पार करते हुए एक सच्चे ब्राह्मण की शरण ली. उनकी शरणागति ने नौका का काम किया. वे ऐसे मुसाफिरों की तरह नहीं है जो ऐसे सामान्य जहाज पर सवार है जिसके डूबने का खतरा है|”
- “15.14:चन्द्रमा जो अमृत से लबालब है और जो औषधियों की देवता माना जाता है, जो अमृत के समान अमर और दैदीप्यमान है. उसका क्या हश्र होता है जब वह सूर्य के घर जाता है अर्थात दिन में दिखाई देता है. तो क्या एक सामान्य आदमी दुसरे के घर जाकर लघुता को नहीं प्राप्त होगा|”
- “15.15:यह मधु मक्खी जो कमल की नाजुक पंखडियो में बैठकर उसके मीठे मधु का पान करती थी, वह अब एक सामान्य कुटज के फूल पर अपना ताव मारती है. क्यों की वह ऐसे देश में आ गयी है जहा कमल है ही नहीं, उसे कुटज के पराग ही अच्छे लगते है|”
- “15.16:हे भगवान् विष्णु, मेरे स्वामी, मै ब्राह्मणों के घर में इस लिए नहीं रहती क्यों की…..अगस्त्य ऋषि ने गुस्से में समुद्र को ( जो मेरे पिता है) पी लिया.भृगु मुनि ने आपकी छाती पर लात मारी.ब्राह्मणों को पढने में बहोत आनंद आता है और वे मेरी जो स्पर्धक है उस सरस्वती की हरदम कृपा चाहते है.और वे रोज कमल के फूल को जो मेरा निवास है जलाशय से निकलते है और भगवान् शिव की पूजा करते है|”
- “15.17:दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को प्रभाव में लाया जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है. सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है. इसका उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए|”
- “15.18:चन्दन कट जाने पर भी अपनी महक नहीं छोड़ते. हाथी बुढा होने पर भी अपनी लीला नहीं छोड़ता. गन्ना निचोड़े जाने पर भी अपनी मिठास नहीं छोड़ता. उसी प्रकार ऊँचे कुल में पैदा हुआ व्यक्ति अपने उन्नत गुणों को नहीं छोड़ता भले ही उसे कितनी भी गरीबी में क्यों ना बसर करना पड़े|”
Chanakya Neeti sixteen Chapter 16 | चाणक्य नीति : सोलहवां अध्याय
- “16.1:स्त्री (यहाँ लम्पट स्त्री या पुरुष अभिप्रेत है) का ह्रदय पूर्ण नहीं है वह बटा हुआ है. जब वह एक आदमी से बात करती है तो दुसरे की ओर वासना से देखती है और मन में तीसरे को चाहती है|”
- “16.2:मुर्ख को लगता है की वह हसीन लड़की उसे प्यार करती है. वह उसका गुलाम बन जाता है और उसके इशारो पर नाचता है|”
- “16.3:ऐसा यहाँ कौन है जिसमे दौलत पाने के बाद मस्ती नहीं आई. क्या कोई बेलगाम आदमी अपने संकटों पर रोक लगा पाया. इस दुनिया में किस आदमी को औरत ने कब्जे में नहीं किया. किस के ऊपर राजा की हरदम मेहेरबानी रही. किसके ऊपर समय के प्रकोप नहीं हुए. किस भिखारी को यहाँ शोहरत मिली. किस आदमी ने दुष्ट के दुर्गुण पाकर सुख को प्राप्त किया|”
- “16.4:व्यक्ति को महत्ता उसके गुण प्रदान करते है वह जिन पदों पर काम करता है सिर्फ उससे कुछ नहीं होता. क्या आप एक कौवे को गरुड़ कहेंगे यदि वह एक ऊँची ईमारत के छत पर जाकर बैठता है|”
- “16.5:जो व्यक्ति गुणों से रहित है लेकिन जिसकी लोग सराहना करते है वह दुनिया में काबिल माना जा सकता है. लेकिन जो आदमी खुद की ही डींगे हाकता है वो अपने आप को दुसरे की नजरो में गिराता है भले ही वह स्वर्ग का राजा इंद्र हो|”
- “16.6:यदि एक विवेक संपन्न व्यक्ति अच्छे गुणों का परिचय देता है तो उसके गुणों की आभा को रत्न जैसी मान्यता मिलती है. एक ऐसा रत्न जो प्रज्वलित है और सोने के अलंकर में मढने पर और चमकता है|”
- “16.7:वह व्यक्ति जो सर्व गुण संपन्न है अपने आप को सिद्ध नहीं कर सकता है जबतक उसे समुचित संरक्षण नहीं मिल जाता. उसी प्रकार जैसे एक मणि तब तक नहीं निखरता जब तक उसे आभूषण में सजाया ना जाए|”
- “16.8:मुझे वह दौलत नहीं चाहिए जिसके लिए कठोर यातना सहनी पड़े, या सदाचार का त्याग करना पड़े या अपने शत्रु की चापलूसी करनी पड़े|”
- “16.9:जो अपनी दौलत, पकवान और औरते भोगकर संतुष्ट नहीं हुए ऐसे बहोत लोग पहले मर चुके है. अभी भी मर रहे है और भविष्य में भी मरेंगे|”
- “16.10:सभी परोपकार और तप तात्कालिक लाभ देते है. लेकिन सुपात्र को जो दान दिया जाता है और सभी जीवो को जो संरक्षण प्रदान किया जाता है उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता|”
- “16.11:घास का तिनका हल्का है. कपास उससे भी हल्का है. भिखारी तो अनंत गुना हल्का है. फिर हवा का झोका उसे उड़ाके क्यों नहीं ले जाता. क्योकि वह डरता है कही वह भीख न मांग ले|”
- “16.12:बेइज्जत होकर जीने से अच्छा है की मर जाए. मरने में एक क्षण का दुःख होता है पर बेइज्जत होकर जीने में हर रोज दुःख उठाना पड़ता है|”
- “16.13:सभी जीव मीठे वचनों से आनंदित होते है. इसीलिए हम सबसे मीठे वचन कहे. मीठे वचन की कोई कमी नहीं है.
- “16.14:इस दुनिया के वृक्ष को दो मीठे फल लगे है. मधुर वचन और सत्संग|”
- “16.15:पहले के जन्मो की अच्छी आदते जैसे दान, विद्यार्जन और तप इस जनम में भी चलती रहती है. क्योकि सभी जनम एक श्रुंखला से जुड़े है|”
- “16.16:जिसका ज्ञान किताबो में सिमट गया है और जिसने अपनी दौलत दुसरो के सुपुर्द कर दी है वह जरुरत आने पर ज्ञान या दौलत कुछ भी इस्तमाल नहीं कर सकता|”
Chanakya Neeti Seventeen Chapter 17 | चाणक्य नीति : सत्रहवां अध्याय
- “17.1: वह विद्वान जिसने असंख्य किताबो का अध्ययन बिना सदगुरु के आशीर्वाद से कर लिया वह विद्वानों की सभा में एक सच्चे विद्वान के रूप में नहीं चमकता है. उसी प्रकार जिस प्रकार एक नाजायज औलाद को दुनिया में कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं होती|”
- “17.2:हमें दुसरो से जो मदद प्राप्त हुई है उसे हमें लौटना चाहिए. उसी प्रकार यदि किसीने हमसे यदि दुष्टता की है तो हमें भी उससे दुष्टता करनी चाहिए. ऐसा करने में कोई पाप नहीं है|”
- “17.3:वह चीज जो दूर दिखाई देती है, जो असंभव दिखाई देती है, जो हमारी पहुच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल हो सकती है यदि हम तप करते है. क्यों की तप से ऊपर कुछ नहीं|”
- “17.4:लोभ से बड़ा दुर्गुण क्या हो सकता है. पर निंदा से बड़ा पाप क्या है. जो सत्य में प्रस्थापित है उसे तप करने की क्या जरूरत है. जिसका ह्रदय शुद्ध है उसे तीर्थ यात्रा की क्या जरूरत है. यदि स्वभाव अच्छा है तो और किस गुण की जरूरत है. यदि कीर्ति है तो अलंकार की क्या जरुरत है. यदि व्यवहार ज्ञान है तो दौलत की क्या जरुरत है. और यदि अपमान हुआ है तो मृत्यु से भयंकर नहीं है क्या|”
- “17.5:समुद्र ही सभी रत्नों का भण्डार है. वह शंख का पिता है. देवी लक्ष्मी शंख की बहन है. लेकिन दर दर पर भीख मांगने वाले हाथ में शंख ले कर घूमते है. इससे यह बात सिद्ध होती है की उसी को मिलेगा जिसने पहले दिया है|”
- “17.6:जब आदमी में शक्ति नहीं रह जाती वह साधू हो जाता है. जिसके पास दौलत नहीं होती वह ब्रह्मचारी बन जाता है. रुग्ण भगवान् का भक्त हो जाता है. जब औरत बूढी होती है तो पति के प्रति समर्पित हो जाती है|”
- “17.7:साप के दंश में विष होता है. कीड़े के मुह में विष होता है. बिच्छू के डंख में विष होता है. लेकिन दुष्ट व्यक्ति तो पूर्ण रूप से विष से भरा होता है|”
- “17.8:जो स्त्री अपने पति की सम्मति के बिना व्रत रखती है और उपवास करती है, वह उसकी आयु घटाती है और खुद नरक में जाती है|”
- “17.9:स्त्री दान दे कर, उपवास रख कर और पवित्र जल का पान करके पावन नहीं हो सकती. वह पति के चरणों को धोने से और ऐसे जल का पान करने से शुद्ध होती है|”
- “17.10:एक हाथ की शोभा गहनों से नहीं दान देने से है. चन्दन का लेप लगाने से नहीं जल से नहाने से निर्मलता आती है. एक व्यक्ति भोजन खिलाने से नहीं सम्मान देने से संतुष्ट होता है. मुक्ति खुद को सजाने से नहीं होती, अध्यात्मिक ज्ञान को जगाने से होती है|”
- “17.11:टुंडी फल खाने से आदमी की समझ खो जाती है. वच मूल खिलाने से लौट आती है. औरत के कारण आदमी की शक्ति खो जाती है, दूध से वापस आती है|”
- “17.12:जिसमे सभी जीवो के प्रति परोपकार की भावना है वह सभी संकटों पर मात करता है और उसे हर कदम पर सभी प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त होती है|”
- “17.13:वह इंद्र के राज्य में जाकर क्या सुख भोगेगा….जिसकी पत्नी प्रेमभाव रखने वाली और सदाचारी है.जिसके पास में संपत्ति है.जिसका पुत्र सदाचारी और अच्छे गुण वाला है.जिसको अपने पुत्र द्वारा पौत्र हुए है|”
- “17.14:मनुष्यों में और निम्न स्तर के प्राणियों में खाना, सोना, घबराना और गमन करना समान है. मनुष्य अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ है तो विवेक ज्ञान की बदौलत. इसलिए जिन मनुष्यों में ज्ञान नहीं है वे पशु है|”
- “17.15:यदि मद मस्त हाथी अपने माथे से टपकने वाले रस को पीने वाले भौरों को कान हिलाकर उड़ा देता है, तो भौरों का कुछ नहीं जाता, वे कमल से भरे हुए तालाब की ओर ख़ुशी से चले जाते है. हाथी के माथे का शृंगार कम हो जाता है|”
- “17.16:ये आठो कभी दुसरो का दुःख नहीं समझ सकते ..|”
१. राजा २. वेश्या ३. यमराज ४. अग्नि ५. चोर ६. छोटा बच्चा ७. भिखारी और ८. कर वसूल करने वाला|”
- “17.17:हे महिला, तुम निचे झुककर क्या देख रही हो? क्या तुम्हारा कुछ जमीन पर गिर गया है?हे मुर्ख, मेरे तारुण्य का मोती न जाने कहा फिसल गया|”
- “17.18:हे केतकी पुष्प! तुममे तो कीड़े रहते है. तुमसे ऐसा कोई फल भी नहीं बनता जो खाया जाय. तुम्हारे पत्ते काटो से ढके है. तुम टेढ़े होकर बढ़ते हो. कीचड़ में खिलते हो. कोई तुम्हे आसानी से पा नहीं सकता. लेकिन तुम्हारी अतुलनीय खुशबु के कारण दुसरे पुष्पों की तरह सभी को प्रिय हो. इसीलिए एक ही अच्छाई अनेक बुराइयों पर भारी पड़ती है|”
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